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तव॒ त्ये अ॑ग्ने अ॒र्चयो॒ महि॑ व्राधन्त वा॒जिनः॑। ये पत्व॑भिः श॒फानां॑ व्र॒जा भु॒रन्त॒ गोना॒मिषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava tye agne arcayo mahi vrādhanta vājinaḥ | ye patvabhiḥ śaphānāṁ vrajā bhuranta gonām iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। त्ये। अ॒ग्ने॒। अ॒र्चयः॑। महि॑। व्रा॒ध॒न्त॒। वा॒जिनः॑। ये। पत्व॑ऽभिः। श॒फाना॑म्। व्र॒जा। भु॒रन्त॑। गोना॑म्। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:6» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अग्निविद्या के उपदेश को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (ये) जो (गोनाम्) गौओं के (शफानाम्) खुरों के (पत्वभिः) गमनों से (व्रजा) वेगों को (भुरन्त) धारण करते हैं और जो (महि) बड़े (अर्चयः) तेज (वाजिनः) वेगवाले (व्राधन्त) बढ़ते हैं (त्ये) वे (तव) आपके कार्य सिद्ध करनेवाले हैं, उनके विज्ञान से (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (इषम्) अन्न को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे घोड़े और गाएँ पैरों से दौड़ती हैं, वैसे ही अग्नि के तेज शीघ्र चलते हैं और जो अग्न्यादिकों के संप्रयोग करने को जानते हैं, उन की सब प्रकार वृद्धि होती है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरग्निविद्योपदेशमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ये गोनां शफानां पत्वभिर्व्रजा भुरन्त ये मह्यर्चयो वाजिनो व्राधन्त त्ये तव कार्यसाधकाः सन्ति तद्विज्ञानेन स्तोतृभ्य इषमा भर ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (त्ये) ते (अग्ने) विद्वन् (अर्चयः) दीप्तयः (महि) महान्तः (व्राधन्त) वर्द्धन्ते (वाजिनः) वेगवन्तः (ये) (पत्वभिः) गमनैः (शफानाम्) खुराणाम् (व्रजा) वेगान् (भुरन्त) धरन्ति (गोनाम्) गवाम् (इषम्) (स्तोतृभ्यः) (आ) (भर) ॥७॥
भावार्थभाषाः - यथाश्वा गावश्च पद्भिर्धावन्ति तथैवाग्नेर्ज्योतींषि सद्यो गच्छन्ति येऽग्न्यादीन् सम्प्रयोक्तुं जानन्ति ते सर्वतो वर्द्धन्ते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे घोडे व गाई पायाने धावतात तसेच अग्नीचे तेज शीघ्र धावते. जे अग्नी इत्यादींचे प्रयोग जाणतात त्यांची सर्व प्रकारे वृद्धी होते. ॥ ७ ॥